गूगल की नई पहल: भारत में AI क्रांति और वेब मास्टर्स के लिए तकनीकी दिशा-निर्देश

वैश्विक तकनीकी दिग्गज गूगल ने हाल ही में दो महत्वपूर्ण मोर्चों पर सुर्खियां बटोरी हैं। एक तरफ कंपनी ने भारत के डिजिटल और स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में भारी निवेश की घोषणा की है, तो दूसरी तरफ वेबसाइट संचालकों और एसईओ (SEO) कम्युनिटी के लिए साइट माइग्रेशन को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट की है। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि गूगल न केवल भविष्य की तकनीक को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि मौजूदा इंटरनेट इकोसिस्टम की गुणवत्ता बनाए रखने पर भी जोर दे रहा है।

भारत के AI इकोसिस्टम में बड़ा निवेश

गूगल ने भारत में स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा और टिकाऊ शहरों के विकास के लिए ‘एआई सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस’ को समर्थन देने हेतु 8 मिलियन डॉलर (लगभग 66 करोड़ रुपये) की फंडिंग का ऐलान किया है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य बहुभाषी एआई-आधारित समाधानों को बढ़ावा देना है। एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, गूगल वाधवानी एआई (Wadhwani AI) को 4.5 मिलियन डॉलर की राशि प्रदान कर रहा है, ताकि स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जा सके।

इसके अलावा, कंपनी ने भारत के ‘हेल्थ फाउंडेशन मॉडल’ को विकसित करने के लिए 4,00,000 डॉलर की प्रतिबद्धता जताई है। यह निवेश ‘मेडजेम्मा’ (MedGemma) का लाभ उठाने वाले नए सहयोगों को समर्थन देगा, जिसका लक्ष्य देश भर में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की दक्षता बढ़ाना और मरीजों के इलाज के परिणामों में सुधार करना है।

स्वास्थ्य और भाषाई विविधता पर जोर

इस मुहीम के तहत, गूगल ने अजना लेंस (Ajna Lens) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के विशेषज्ञों के बीच सहयोग की घोषणा की है। ये मिलकर त्वचा विज्ञान (Dermatology) और ओपीडी ट्राइएजिंग जैसे भारत-विशिष्ट मामलों के लिए मॉडल तैयार करेंगे। कंपनी ने स्पष्ट किया है कि इन मॉडलों से प्राप्त परिणाम भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का हिस्सा बनेंगे और पूरे इकोसिस्टम के लिए उपलब्ध होंगे। साथ ही, भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ता और चिकित्सक व्यापक क्लीनिकल अनुप्रयोगों के लिए एआई मॉडलों की खोज करेंगे।

भाषाई बाधाओं को दूर करने के लिए, गूगल ने आईआईटी बॉम्बे में नया ‘इंडिक लैंग्वेज टेक्नोलॉजीज रिसर्च हब’ स्थापित करने के लिए 2 मिलियन डॉलर का योगदान दिया है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि वैश्विक तकनीकी प्रगति का लाभ भारत की भाषाई विविधता को भी मिले। इसी क्रम में, ज्ञानी.एआई (Gnani.AI), कोरोवर.एआई (CoRover.AI) और भारतजेन (BharatGen) जैसी भारतीय भाषा समाधान बनाने वाली कंपनियों को 50,000 डॉलर का अनुदान दिया जा रहा है।

तकनीकी मोर्चे पर सलाह: साइट माइग्रेशन की चुनौतियाँ

जहाँ एक ओर गूगल नई तकनीकों में निवेश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर उसने वेबसाइटों के प्रबंधन को लेकर एक अहम तकनीकी स्पष्टीकरण भी जारी किया है। गूगल के जॉन म्यूएलर ने हाल ही में “स्टैगर्ड साइट माइग्रेशन” (किस्तों में वेबसाइट को एक डोमेन से दूसरे पर ले जाना) के खतरों पर बात की।

आमतौर पर एक डोमेन से दूसरे डोमेन पर पूरी तरह से शिफ्ट होना सामान्य माना जाता है और गूगल सर्च कंसोल का ‘चेंज ऑफ एड्रेस’ टूल इसे अच्छे से संभाल लेता है। लेकिन समस्या तब आती है जब यह प्रक्रिया टुकड़ों में की जाती है।

‘साइट अंडरस्टैंडिंग’ और एसईओ पर प्रभाव

म्यूएलर ने आगाह किया है कि आंशिक साइट मूव्ज़—जहाँ होमपेज को नए डोमेन पर ले जाया जाता है लेकिन पुराने डोमेन पर अभी भी कई प्रोडक्ट या कैटेगरी पेज मौजूद रहते हैं—एसईओ (SEO) के लिहाज से जोखिम भरे हो सकते हैं। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि वेबसाइट का एक पैर नए डोमेन पर है और दूसरा मजबूती से पुराने पर जमा हुआ है।

गूगल के लिए ऐसी स्थिति में “साइट अंडरस्टैंडिंग” बनाना मुश्किल हो जाता है। यह शब्द इस बात का संकेत है कि गूगल यह कैसे समझता है कि इंटरनेट के विशाल जाल में वह साइट कहाँ फिट बैठती है और उसकी गुणवत्ता कैसी है। जब माइग्रेशन अधूरा या बिखरा हुआ होता है, तो सर्च इंजन के लिए साइट की प्रासंगिकता और डोमेन के साथ उसके रिश्ते को समझना पेचीदा हो जाता है, जिससे सर्च रैंकिंग पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

इसलिए, तकनीकी विशेषज्ञों और वेबमास्टर्स के लिए सलाह यही है कि यदि साइट माइग्रेशन करना हो, तो इसे एक स्पष्ट और पूर्ण प्रक्रिया के रूप में अंजाम दें, ताकि गूगल के एल्गोरिदम इसे सही तरीके से प्रोसेस कर सकें।