बृहस्पति के रहस्यमयी केंद्र की पहेली: क्या महाटकराव का सिद्धांत गलत था?

सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह, बृहस्पति का केंद्र वैज्ञानिकों के लिए लंबे समय से एक अनसुलझी पहेली बना हुआ है। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि इसका केंद्र किसी ठोस चट्टान की तरह नहीं है, बल्कि यह एक ‘फैला हुआ केंद्र’ (dilute core) है। इसमें भारी तत्व हाइड्रोजन और हीलियम जैसी हल्की गैसों के साथ मिले हुए हैं और ग्रह के अंदरूनी हिस्से से लेकर बाहरी तरफ हजारों किलोमीटर तक फैले हुए हैं। इस अनोखी संरचना का पता नासा के जूनो अंतरिक्ष यान द्वारा किए गए सटीक मापों से चला था, लेकिन यह बना कैसे, यह एक रहस्य था।
महाटकराव का सिद्धांत खारिज
पहले, वैज्ञानिकों के बीच सबसे प्रचलित सिद्धांत यह था कि बृहस्पति के ऐसे केंद्र का निर्माण अरबों साल पहले किसी विशाल चट्टानी ग्रह के साथ हुई एक भयंकर टक्कर (giant impact) का परिणाम था। इस सिद्धांत के अनुसार, टक्कर इतनी शक्तिशाली थी कि उस ग्रह के भारी तत्व बृहस्पति के केंद्र में समा गए और हाइड्रोजन-हीलियम की परतों के साथ मिल गए।
हालांकि, डरहम विश्वविद्यालय के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल द्वारा किए गए एक नए अध्ययन ने इस सिद्धांत को चुनौती दी है। टीम ने अत्याधुनिक सुपर कंप्यूटर (DiRAC COSMA) का उपयोग करके कई सिमुलेशन किए। इन सिमुलेशन के परिणामों से पता चला कि इस तरह की विशाल टक्कर से बृहस्पति के मौजूदा स्थिर और फैले हुए केंद्र का निर्माण नहीं हो सकता। शोधकर्ताओं ने पाया कि टक्कर के बाद भारी पदार्थ (जैसे चट्टान और बर्फ) अस्थायी रूप से बिखर तो जाते, लेकिन वे गुरुत्वाकर्षण के कारण बहुत जल्द ही वापस इकठ्ठा होकर एक स्पष्ट सीमा वाला ठोस केंद्र बना लेते, जो कि जूनो के अवलोकनों के विपरीत है।
एक नया दृष्टिकोण: क्रमिक अभिवृद्धि
महाटकराव के सिद्धांत के विफल होने के बाद, शोधकर्ता अब एक वैकल्पिक सिद्धांत प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके अनुसार, बृहस्पति का केंद्र किसी एक विनाशकारी घटना का परिणाम नहीं है, बल्कि यह ग्रह के निर्माण की शुरुआती अवस्था के दौरान भारी और हल्के तत्वों के धीरे-धीरे और एक साथ जमा होने से बना है। इसे ‘क्रमिक मिश्रण’ (gradual mixing) की प्रक्रिया कहा जा सकता है, जिसमें भारी और हल्के पदार्थ एक साथ मिलकर ग्रह का हिस्सा बनते गए, जिससे एक फैला हुआ और मिश्रित केंद्र बना।
शनि से मिले सुराग और व्यापक प्रभाव
इस ‘क्रमिक मिश्रण’ के सिद्धांत को इस तथ्य से और भी बल मिलता है कि हमारे सौर मंडल के दूसरे सबसे बड़े गैस दानव, शनि (Saturn) का केंद्र भी बृहस्पति की ही तरह फैला हुआ है। यह समानता इस बात की ओर इशारा करती है कि ऐसी संरचना का निर्माण किसी दुर्लभ और विशाल टक्कर के बजाय ग्रहों के विकास की एक सामान्य प्रक्रिया हो सकती है।
यह खोज सिर्फ बृहस्पति और शनि के लिए ही नहीं, बल्कि सौर मंडल के अन्य गैस ग्रहों जैसे यूरेनस और नेपच्यून, और यहां तक कि हमारे सौर मंडल के बाहर पाए जाने वाले एक्सोप्लैनेट के निर्माण के सिद्धांतों पर भी गहरा प्रभाव डालती है। यदि ग्रहों का निर्माण टक्कर के बजाय क्रमिक रूप से पदार्थों को जमा करके होता है, तो हमें ग्रहों के आंतरिक संरचना और विकास की अपनी समझ को फिर से परिभाषित करना होगा।
भविष्य के शोध और अन्य संभावनाएं
हालांकि यह अध्ययन एक नई दिशा दिखाता है, कुछ शोधकर्ता यह भी मानते हैं कि अत्यधिक दबाव और तापमान की स्थितियों में होने वाली अन्य जटिल भौतिक प्रक्रियाएं, जैसे ‘केंद्र का क्षरण’ (core erosion) और ‘हीलियम वर्षा’ (helium rain), भी बृहस्पति के फैले हुए केंद्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इस रहस्य को पूरी तरह से सुलझाने के लिए और अधिक उन्नत सिमुलेशन और सटीक अवलोकन डेटा की आवश्यकता होगी। हाल के ये निष्कर्ष बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे सौर मंडल के निर्माण से जुड़े मूलभूत सिद्धांतों को चुनौती देते हैं और गैस ग्रहों की उत्पत्ति को समझने के लिए एक नई दिशा प्रदान करते हैं।